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खेती, किसान व उसकी समस्याएँ

मध्यप्रदेश के बड़वानी, झाबुआ,धार,अलीराजपुर, खरगोन तथा खंडवा जिलों में भील, भिलाला एवं बारेला समुदाय के आदिवासी समाज रहता है। प्रकृति के साथ इनका गहरा रिश्ता होने के कारण मूलत: यहाँ के आदिवासी कृषि, पशुपालन एवं जंगलों में मिलने वाले फल-फूल, गोंद को बेचकर अपनी आजीविका का निर्वाह करते है। लगभग 20 वर्ष पूर्व इनके खेतों खाद्य वस्तुओं का उत्पादन होता था। लेकिन जैसे-जैसे बाजार का प्रभाव शहरों से गाँवो की ओर पड़ने लगा इनके खेतों में अधिकतर नगदी फसलें जैसे कपास, सोयाबीन आने लगी। इन फसलों के कारण खेतों में रासायनिक कीटनाशक व उर्वरक का उपयोग करने लगे । जिससे इनका शहरों के सेठ-साहूकारों से लेन-देन बढ़ने लगा। सेठ-साहूकारों इनको अपने खेतों में तरह-तरह के कीटनाशकों एवं उर्वरक का प्रयोग करने की आदत बना दी। अब ये हर साल कीटनाशक व उर्वरक की मात्रा में बढ़ोत्तरी करने लगे । जिससे इनकी कृषि में लागत प्रति वर्ष बढ़ने लगी । जबकि आय कुछ विशेष नहीं रही क्योंकि आखिर में फसल तैयार होने के बाद अधिकतर पैसा सेठ-साहूकारों का कर्जा चुकाने में पूरा हो जाता । जो थोड़ा बहुत बचता वह भी बाजार की वस्तुओं की लेन-देन में चले जाता।